रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं? रक्षाबंधन का रहस्य

रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं?
रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं?

Raksha Bandhan Kyu Manaya Jata Hai: इस साल राखी का त्योहार 9 अगस्त 2025, दिन शनिवार को मनाया जाएगा। आप भी राखी बांधने का सबसे अच्छा समय नोट कर लें – सुबह 5:47 बजे से दोपहर 1:24 बजे तक। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हम ये त्योहार क्यों मनाते हैं? इसके पीछे की असली कहानी क्या है? चलिए, हम आपको इसकी पूरी जानकारी और दिलचस्प इतिहास बताते हैं।

रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं?

Raksha Bandhan Kyu Manaya Jata Hai: भाई-बहन का सबसे प्यारा त्योहार, रक्षाबंधन, इस साल 9 अगस्त को मनाया जाएगा! यह त्योहार हमेशा सावन की पूर्णिमा के दिन आता है। हम सब राखी तो मनाते हैं, पर क्या आपको पता है कि यह त्योहार क्यों शुरू हुआ? असल में, इसके पीछे एक नहीं, बल्कि कई सारी कहानियाँ हैं। कुछ कहानियाँ तो भगवानों से जुड़ी हैं, जैसे श्रीकृष्ण और द्रौपदी की, माता लक्ष्मी और राजा बलि की, और इंद्र-इंद्राणी की। एक ऐतिहासिक कहानी भी है रानी कर्णावती और हुमायूं की, जिसने इस त्योहार के मतलब को और भी गहरा बना दिया।

चलिए आपको बताते है की रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं?

राखी का त्योहार सिर्फ एक धागे का नहीं, बल्कि कई खूबसूरत कहानियों का भी त्योहार है। ये कहानियाँ ही तो हैं जो इस पर्व का असली मतलब समझाती हैं। तो आइए, हम आपको उन्हीं मजेदार कथाओं के बारे में बताते हैं।

रक्षाबंधन: जब कृष्ण बने द्रौपदी के रक्षक

एक बार की बात है, भगवान श्रीकृष्ण की उंगली कट गई और खून रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। वहां खड़ी द्रौपदी ने एक पल भी नहीं सोचा, अपनी कीमती साड़ी का कोना फाड़ा और झट से श्रीकृष्ण की उंगली पर पट्टी बांध दी। इस अपनेपन से भगवान कृष्ण इतने भावुक हो गए कि उन्होंने द्रौपदी को अपनी बहन मान लिया और वादा किया कि वह हर मुसीबत में उसकी ढाल बनेंगे। और जब कौरवों ने द्रौपदी का अपमान करना चाहा, तो कृष्ण ने ही अपनी बहन की लाज की रक्षा की। कहते हैं कि तभी से ये रक्षा का बंधन इतना पवित्र माना जाने लगा।

रक्षाबंधन: इंद्र-इंद्राणी की कथा

यह कहानी बहुत ही दिलचस्प है और देवताओं से जुड़ी है। एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था, जिसमें देवताओं के राजा इंद्र हार रहे थे। यह देखकर उनकी पत्नी इंद्राणी घबरा गईं। उन्होंने अपने पति की रक्षा के लिए एक धागे में मंत्रों की शक्ति भरी और उसे इंद्र की कलाई पर बांध दिया। और कमाल हो गया! इंद्र ने राक्षसों को हरा दिया और युद्ध जीत गए। माना जाता है कि रक्षाबंधन की परंपरा असल में यहीं से शुरू हुई थी। यह सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि एक ‘रक्षा कवच’ था। धीरे-धीरे यह त्योहार भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया और आज बहनें अपने भाई की कलाई पर यही रक्षा का धागा बांधती हैं।

रक्षाबंधन: जब माता लक्ष्मी ने बांधी राखी

जब भगवान विष्णु ने राजा बलि से उनका सब कुछ ले लिया, तो वो बलि की भक्ति से इतने खुश हुए कि उनके साथ ही रहने का वादा कर दिया। अब वैकुंठ में माता लक्ष्मी अकेली परेशान हो गईं। उन्होंने एक बहुत अच्छा उपाय निकाला। वह एक साधारण औरत बनकर राजा बलि के पास गईं और उनकी कलाई पर राखी बांध दी। जब राजा बलि ने कहा, “बहन, मांगो क्या चाहिए तोहफे में?” तो माता लक्ष्मी ने तुरंत कह दिया, “मुझे मेरे पति वापस चाहिए।” राजा बलि वचन में बंध गए और उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी बहन लक्ष्मी के साथ वापस भेज दिया। कहते हैं कि उस दिन सावन महीने की पूर्णिमा थी और तभी से राखी का यह प्यारा त्योहार मनाया जाने लगा।

रक्षाबंधन: एक राखी, एक ऐतिहासिक वचन

इतिहास में भी एक ऐसी राखी की कहानी है जिसने धर्म की दीवारें तोड़ दी थीं। बात उस समय की है जब रानी कर्णावती के राज्य पर हमला हुआ। उन्हें जब कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को एक राखी भेजी और मदद की गुहार लगाई। कहते हैं कि हुमायूं उस राखी को देखकर बहुत भावुक हो गए और फौरन अपनी सेना लेकर एक बहन की रक्षा के लिए चल पड़े। हालांकि, उनके पहुंचने में थोड़ी देर हो गई और रानी कर्णावती को अपनी जान देनी पड़ी। लेकिन हुमायूं ने राखी का मान रखा। उन्होंने बाद में हमलावर को हराया और रानी के बेटे को गद्दी पर बैठाकर अपना वादा पूरा किया।

ज़रूरी सूचना: यहां दी गई जानकारी का आधार धार्मिक आस्था और लोक कथाएँ हैं।

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