कल्पना कीजिए कि राजस्थान के एक छोटे से गांव की जहां धूल भरी गलियां है और ज्यादातर वहां के लोग खेती किसानी पर निर्भर है इसी माहौल में झुंझुनू जिले के “किठाना” गांव में 1951 में एक आम किसान परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया जगदीप धनखड़ कौन जानता था कि खेत में अपने पिता को काम करते देखने वाला यह लड़का एक दिन भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर बैठेगा और संसद के ऊपरी सदन की अध्यक्षता भी करेगा जगदीप धनखड़ की कहानी किसी फिल्मी कहानी से भी कम नहीं है उनकी मेहनत लगन और काबिलियत की एक जीती जागती लोगों के लिए मिसाल बन गई है

एक छोटी सी शुरुआत और पढ़ाई का जुनून
एक किसान का बेटा होने के नाते जगदीप धनखड़ साहब ने जीवन की चुनौतियों को करीब से देखा उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई लेकिन उनके माता-पिता ने शिक्षा का महत्व समझा उन्हें पढ़ने के लिए चित्तौड़गढ़ के प्रतिष्ठ सैनिक स्कूल भेजा गया जहां धनखड़ साहब को अनुशासन और पढ़ाई का माहौल मिला इसके बाद उन्होंने जयपुर जाकर राजस्थान यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया धनखड़ जी विज्ञान के छात्र होने के बावजूद उनकी असली दिलचस्पी कानून और बहस में थी शायद यही से उनके भविष्य की नींव पड़ रही थी उन्होंने इसी यूनिवर्सिटी से वकालत (LLB) की डिग्री हासिल की |
एक खतरनाक वकील का उदय
वकालत के पढ़ाई पूरी करने के बाद जगदीप धनखड़ ने कोर्ट में कदम रखा धनखड़ साहब ने अपनी खतरनाक बहस और कानून की गहरी समझ के चलते उन्होंने बहुत जल्द अपना नाम बना लिया वह राजस्थान हाई कोर्ट के सबसे काबिल वकीलों में से गिने जाने लगे उनकी योग्यता का ही नतीजा यह था कि उन्हें 1990 में सीनियर ”एडवोकेट” का दर्जा दिया गया जो किसी वकील के लिए एक सबसे बड़ी सम्मानजनक बात होती है वह राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी चुने गए जो उनकी लोकप्रियता और साथियों के बीच उनके सम्मान को दिखाता है बाद में उन्होंने दिल्ली जाकर सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस की और देश के बड़े-बड़े मामलों में पैरवी की।

राजनीति के मैदान में
वकालत में धनखड़ साहब ने नाम कमाने के बाद राजनीति में कदम रखा 1989 में वह अपने गृह क्षेत्र झुंझुनू से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़कर पहली बार सांसद बने उन्हें केंद्र सरकार में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी मिली इसके बाद उन्होंने राज्य की राजनीति का भी अनुभव लिया और 1993 में कांग्रेस के टिकट पर राजस्थान विधानसभा में विधायक बनकर पहुंचे कुछ सालों के बाद 2003 में में भारतीय जनता पार्टी [बीजेपी] में शामिल हो गए और पार्टी के एक प्रमुख कानूनी सलाहकार के तौर पर अपनी अहम भूमिका धनखड़ साहब ने निभाई
बंगाल के राज्यपाल और चर्चित कार्यकाल
उनके जीवन में एक नया चुनौतीपूर्ण अध्याय तब शुरू हुआ जब वह 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनाए गए यह कार्यकाल काफी चर्चित रहा राज्यपाल के तौर पर वह संवैधानिक नियमों को लेकर बहुत मुखर थे और अक्सर राज्य की ममता बनर्जी सरकार के साथ उनके मतभेद बने रहने की खबरें आती रहती थी इस दौरान उनकी छवि एक ऐसे राज्यपाल की बनी जो बिना डरे संविधान के दायरे में रहकर अपनी बात रखता है
भारत के उपराष्ट्रपति
धनखड़ साहब को उनके लंबे अनुभव और संवैधानिक समझ को देखते हुए 2022 में सत्ताधारी एनडीए गठबंधन ने उन्हें उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया और उन्होंने चुनाव में शानदार जीत हासिल की ओर 11 अगस्त 2022 को भारत के 14वे उपराष्ट्रपति बने
आज वे उपराष्ट्रपति होने के साथ-साथ राज्य सभा के सभापति भी हैं। इस भूमिका में वे सदन की बहसों को संचालित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी चर्चाएँ नियमों के अनुसार हों। उनका लंबा कानूनी और राजनीतिक अनुभव इस काम में उनकी बहुत मदद करता है। संक्षेप में कहें तो, जगदीप धनखड़ की कहानी यह बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत करने का जज्बा हो, तो कोई भी इंसान एक छोटे से गाँव से निकलकर देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँच सकता है।